हचीको- टुरिझम फिल्ड मे मेरे काम कि प्रेरणा
हचीको- ये नाम जाना जाता है
अपने वफादारी के लिएI ये एक सच्ची कहाणी है,
१९२४ के
दरम्यान जपान
मे एक कृषी विद्यापीठ मे, पढाने का काम करने
वाले प्रोफेसर एजाबुरो यूनो
को,
एक बुद्ध भिक्कू ने एक कुत्ते का छोटा
बच्चा भेट स्वरूप दियाI जिसका नाम हचीकों था I
हाची माने अकिटो जाती के कुत्ते मी ८ वी
नंबर के नस्ल का कुत्ताI छोटे हचीको और उस प्रोफेसर मे अच्छा रिश्ता बन गया थाI प्रोफेसर हर दिन
युनिवर्सिटीमे अप डाऊन करते थेI वे ट्रेन से आते जाते थे,
हचीको हर दिन उनको छोडने रेल्वे स्टेशन
जाता था और शाम के वक्त जब उनका आने
का समय होता था, तब उनको लाने फिरसे
रेल्वे स्टेशन जाता थाI उन दोनोंका एक दुसरे के प्रती प्यार पुरे रेल्वे स्टेशन को पता
थाI ये सिलसिला ३-४ साल तक चलता रहाI
एक दिन प्रोफेसर युनिव्हर्सिटी गये थे, युनिव्हर्सिटीमे उनको स्ट्रोक का दौरा पडा और उसमेही उनकी मृत्यू हो गयीI उनका अंतिम संस्कार करने उनके बीबी, बच्ची और दोस्त चले गये, सब संस्कार कर के घर आ गये तो हचीको घर पर नही थाI बिचारे हचीको को इसके बारे मे कुच्छ भी पता नही थाI शाम के वक्त, हमेशा कि तरह वो अपने मलिक को रिसीव्ह करने रेल्वे स्टेशन पर गया था, हमेशा कि ट्रेन आयी लेकीन उसमेसे प्रोफेसर नही उतरे, वो उतरनेवले भी नही थेI हचीको विचलित हो गया, वो ट्रेन चली गयी, थोडी देर बाद दुसरी ट्रेन आयी, तब तक हचीको platform पर हि बैठा थाI दुसरी ट्रेन का आवाज सुनकर हचीको झट से खडा हो गया, उसको लगा शायद इस ट्रेन से आयेंगेI प्रोफेसर कि बिवी और बच्ची को जब पता चला कि हचीको घरपर नही है, तो वो रेल्वे स्टेशन आयी, हचीको को समझाकर घर वापस ले गयीI जैसे हि ट्रेन का आवाज सुना तो हचीको रेल्वे स्टेशन कि ओर भागा, उसको लगा प्रोफेसर शायद इस ट्रेन से आयेंगेI. हचीको कि ये अवस्था देख, प्रोफेसर कि बीबी और बच्ची को बहोत दुख हूआ, लेकीन वे भी क्या कर सकती थी, वे खुद इस सदमेसे उभर रही थीI
दिन गुजरते गये, प्रोफेसर के बीबी ने, उनके दोस्त के साथ
शादी कर ली, प्रोफेसर कि बेटी कि भी उसी गाव मे शादी हो गयीI सब कि जिंदगी आगे
निकल गयी, अब प्रोफेसर सब कि यादो मे चले गये, सीवाय हचीको केI सब ने हचीको को अपने
पास रखने कि कोशिष कि लेकीन हचीको अभी भी प्रोफेसर का इंतजार करता थाI कुच्छ दिनोंके बाद तो
उसने घर मे रहना और आना जाना बंद हि कर दियाI
अब हचीको रेल्वे स्टेशन पर हि रहने लगाI आने जाने वाले जो
हचीको को जानते थे, वे लोग उसको खिलाते पिलाते थेI
हचीको सारा दिन रेल्वे स्टेशन पर हि
रहता, रेल्वे स्टेशन पर आनेवाली हर ट्रेन के आवाज से platform पर
आता, उस ट्रेन से प्रोफेसर उतरते है या नही हे चेक करता, ट्रेन चली जाती तो, वो फिरसे कही कोने मी
जाके बैठ जाता या रेल्वे स्टेशन के बाहर आके बैठताI
जपान के एक छोटेसे रेल्वे स्टेशन पर एक कुत्ता अपने कभी न लौटने वाले मालिक के लिए वफादारी निभा रहा है, ये बात तब पुरे जपान और दुनिया मी फैलने लगीI तभी तो इंटरनेट भी नही था, फिर भी न्यूज पेपर के जरीये ये बात लोगोंतक पहुंचने लगीI दुनियाभर से बहोत सारे रिपोर्टर्स हचीको का फोटो खिचने, उसके बारे मे जानकारी हासील करने उस छोटेसे गाव मे आने लगेI उस दौरान हचीको को हासील करने कि कोशिष भी कि गयी लेकीन हचीको अपने मलिक के प्रती वफादार था, इस वजेसे किसीकी दाल गल नही सकीI हचीको पुरे दुनिया मे वफादारी के लिये जाना जाने लगाI अपने मालिक कि राह देखते देखते काफी वक्त गुजर गयाI कितना? १ साल २ साल ऐसे करते करते लगभग ८-९ साल तक हचीको अपने मालिक कि राह देखते रहा और राह देखते देखते हि रेल्वे स्टेशन मेही दम तोडाI १९८४ मे जपान मी हचीको को लेके एक सिनेमा बना और २००४ मे हॉलीवूड "हचीको- अ डॉग स्टोरी" नाम का सिनेमा बनाI
जब २०११ मे, मै मेरा बँक का जॉब
छोडकर, प्याज बेचने के बहाने,
दक्षिण भारत मी रोड ट्रिप्स कर रहा था
और टुरिझम फिल्ड मे काम करने का सोच रहा था,
तब अपने टुरिझम कंपनी का नाम क्या हो? इसके बारे मे सोच रहा
थाI तभी मेरे बडे भाई,
जो कि फिल्म लेखक और निर्देशक भी है
उन्होने मुझे हचीको अ डॉग स्टोरी सिनेमा दिखायाI
जिस तरह हचीको अपने मालिक के प्रती
वफादार है, ठीक उसी तरह का दृष्टीकोन मेरा टुरिझम के प्रती हैI इसलिये मै मेरे
टुरिझम कंपनी का नाम
www.hachikotourism.inहचीको टुरिझम रखुंगा ये फैसला कियाI २०११ से, मैने मेरे टुरिझम के काम कि शुरवात, कृषी और ग्रामीण पर्यटन कि संकल्पना से किI जिसका नाम पराशर कृषी व ग्रामीण संस्कृती पर्यटन रक्खा गयाI पराशर नाम क्यू और कैसे रक्खा गया इसके बारे मे अगले ब्लॉग मे लीखुंगाI हचीको टुरिझम के अंतर्गत देश विदेश के पर्यटकोंको जुन्नर तहसील कि खेती, ग्रामीण संस्कृती, किल्ले, लेणी, भौगोलिक पर्यटन, निसर्ग पर्यटन, अलग अलग महोत्सव, और अलग अलग पर्यटन अनुभव देने कि कोशिश पिछले १० सालोंमे रही हैI अबतक २१ देशोंसे १०००० से ज्यादा लोग हचीको टुरिझम के माध्यम से मिट्टी के साथ जुडे हैI यही नही, जो भी अनुभव मुझे मिले, जो कुच्छ सिख पाया, जो गलतिया हुई इन सब के बारे मे, भिन्न भिन्न जगह रखने का मौका मिला, पर्यटन प्रशिक्षण, पर्यटन लेखन और पर्यटन सल्लागार कि तौर पर, पर्यटन कि परिभाषा बदलने का सपना देखा, जिसे पुरा करने के लिए हचीको से हमेशा प्रेरणा मिलती रही हैI हचीको मेरे दिलके करीब है, सोचा आज आपको भी उसके बारे मी बताऊI
मनोज हाडवळे
पर्यटन प्रशिक्षक तथा पर्यटन सल्लागार
संचालक- हचीको टुरिझम, पराशर कृषी व ग्रामीण
संस्कृती पर्यटन
09970515438/07038890500
manoj@hachikotourism.in
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